Who Am I: गीता से जाने मैं कौन हूँ और कहां से आया हूं और कहां जाऊंगा?

Who Am I: गीता से जाने मैं कौन हूँ और कहां से आया हूं और कहां जाऊंगा ?

दोस्तों क्या आपके मन में भी कभी यह सवाल आता है कि मैं कौन हूँ और कहां से आया हूं और कहां जाऊंगा? और क्या आप इन सभी सवालों के जवाब आसान शब्दों में जानना चाहते हो? अगर हां, तो इस आर्टिकल को अंत तक अवश्य पढ़िए।

Disclaimer :

दोस्तों इस आर्टिकल के जरिए हमने आपके साथ जो कुछ भी जानकारी शेयर की हुई है, वो सब जानकारी हमने हमारे मुख्य शास्त्र यानी की श्रीमद् भगवद गीता से ली गई हुई है। अगर आप इस आर्टिकल को अंत तक ध्यान से और भक्ति भाव से पढ़ते हो, तो आपको समझ आ जायेगा की मैं कौन हूँ और कहां से आया हूं और कहां जाऊंगा?

मैं कौन हूं | Who Am I in Hindi

मैं कौन हूं | Who Am I in Hindi?

दोस्तो सबसे पहले जानते है की वास्तव में हम सब है कौन? दोस्तों हम सब शरीर नहीं है बल्कि हम सब एक आत्मा है। जिसने भौतिक शरीर रूपी कपड़े पहने हुए है। जब यह शरीर रूपी कपड़े गंदे हो जाते है यानी की जब हमारा यह शरीर बूढ़ा हो जाता है, तब हमारी आत्मा इस पुराने और बूढ़े शरीर रूपी कपड़े को छोडकर दूसरे नए शरीर में प्रवेश करती है।

दोस्तो श्रीमद् भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि “हे अर्जुन तुम और इस रणभूमि में युद्ध करने के लिए आए हुए सभी योद्धा वो नही है, जो तुम्हे वो बाहर (शरीर) से दिखाई दे रहे हैं। बल्कि वो सभी आत्मा है न की शरीर है। सिर्फ उन्होंने कुछ समय के लिए इस भौतिक शरीर में वास किया हुआ है, इसलिए वो सब तुम्हे शरीर दिखाई दे रहे हैं। और यह आत्मा अमर, अजन्मा, नित्य, शास्वत तथा पुरातन है।

कैसे आइए भगवद गीता के श्लोको से जानते है…

दोस्तों श्रीमद् भगवत गीता के 2 रे अध्याय के 20 वे श्लोक में भगवान श्री कृष्ण कहते है…

न जायते म्रियते वा कदाचिन
नायं भूत्वा भविता वा न भूय: |
अजो नित्य: शाश्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे || 20 ||

इसका अर्थ यह है की आत्मा के लिए किसी भी काल में न तो जन्म है न मृत्यु। वह न तो कभी जन्मा है, न कभी जन्म लेता है और न कभी जन्म लेगा। वह अजन्मा, नित्य, शाश्वत तथा पुरातन है। भौतिक शरीर के मारे जाने के बाद भी यह आत्मा कभी भी नहीं मरती है।

श्रीमद् भगवत गीता के 2 रे अध्याय के 22 वे श्लोक में भगवान श्री कृष्ण कहते है…

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि |
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा
न्यन्यानि संयाति नवानि देही || 22 ||

दोस्तों इसका अर्थ यह है की जिस प्रकार व्यक्ति पुराने कपड़ो को त्याग कर नए कपडे पहनता है, उसी प्रकार यह आत्मा पुराने तथा बूढ़े शरीर को त्यागकर नए भौतिक शरीर को धारण करता है।

हम कहां से आए हुए है?

दोस्तो हम सभी भगवान के शाश्वत अंश है और हम सब भगवान के धाम से आए हुए है। श्रीमद् भगवत गीता के 15 वे अध्याय के 7 वे श्लोक में भगवान श्री कृष्ण कहते है की “ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः” यानी की “इस भौतिक जगत में जितने सारे जीव है, वो सभी मेरे शाश्वत अंश है।

हम सब यहां क्यों आए हुए है?

दोस्तो हमने और आप सभी ने बहुत बार इस धरती पर जन्म लिया हुआ है और बहुत बार हमारी मृत्यु भी हुई है। और हर जन्म में हमने इस धरती पर रहकर बहुत सारे अच्छे और बुरे कर्म किए हुए हैं, उसके कारण हम सभी इस जन्म मृत्यु के बंधन में बंध जाते हैं। और इसी कारन से हमें बार बार इस मृत्यु लोक में जन्म लेना पड़ता है।

दूसरी भाषा में कहू तो हम यहाँ पर अपने जीवन को सफल बनाने के लिए आये हुए है, क्यूँकी मनुष्य जीवन ही एक ऐसा जीवन है, जहा हम अपने शरीर का उपयोग करके भगवान की भक्ति कर सकते है और भगवद प्राप्ति कर सकते है। और किसी यो*नी में हम भगवान की भक्ति नहीं कर सकते है और भगवद प्राप्ति नहीं कर सकते है। इसीलिए हमें इस अवसर को यु ही नहीं गवाना चाहिए।

हम सब कहाँ जायेंगे और हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है?

दोस्तों भगवद गीता में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को मनुष्य के जीवन का उद्देश्य बताते हुए कहते हैं कि “हे अर्जुन, मनुष्य जन्म का प्रधान उदेश्य मोक्ष प्राप्त करना है और यह मोक्ष्य केवल मनुष्य के शरीर के द्वारा ही संभव हो पाता है। इसलिए मनुष्य के शरीर को मोक्ष्य का द्वार कहा जाता है।”

हे अर्जुन, हर जीवात्मा को मनुष्य का शरीर बड़ी मुश्किल से मिलता है। ८४ लाख यो*नीयों को भोगने के बाद सबसे आखिर में जीवात्मा को मनुष्य का शरीर मिलता है, इसीलिए इसे यु ही नहीं गवाना चाहिए, क्यूँकी देवी देवता भी मानव शरीर की आकांशा करते है, ताकि उनको मुक्ति मिल सकें।

“परन्तु मनुष्य की विडंबना यह है की वो इस शरीर को अर्थात मोक्ष्य के अवसर को गवाता रहता है। और अपने सारे जीवन को भोग विलास में बिताता रहता है। और जब उसके शरीर के (मृत्यु) छूटने का समय आता है तब भी वासना उसकी पीछा नहीं छोड़ती।”

दोस्तों जब हम भगवान् की भक्ति करने लगते है, तब धीरे धीरे हमारे सभी पापो का अंत होने लगता है। और जब हमारे सभी पापो का अंत हो जाता है, तब हमारी आत्मा को मुकुंद यानि की मुक्तिदाता भगवान् श्री कृष्ण हमें मुक्ति दे देते है। और हमें मुक्ति मिलने के बाद हम भगवान के धाम यानि की गोलोक/ वैकुंठ में चले जाते है और वहा पर हमें साक्षात भगवान श्री कृष्ण की सेवा करने का मौका मिलता है।

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FAQ of Who Am I Hindi Article:

गीता के अनुसार जीवन का उद्देश्य क्या है?

गीता के अनुसार जीवन का उदेश्य मोक्ष को प्राप्त करना है। Read More for More Information.

गीता के अनुसार में कौन हूँ?

गीता के अनुसार में एक आत्मा हूँ और में भगवान् का शास्वत अंश हूँ। Read More for More Information.

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